
उत्तराखंड में हुए हेलीकाप्टर हादसों की जांच के लिए नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) की ओर से हर बार जांच कराई जाती है। यह बात अलग है कि इन जांचों के विषय में राज्य सरकार को बहुत अधिक जानकारी नहीं मिल पाती।
प्रदेश में इस वर्ष हुई हेलीकाप्टर दुर्घटनाओं की जांच की जानकारी भी अभी तक सरकार से साझा नहीं की गई है। प्रदेश में हेली सेवाओं का संचालन बढ़ा है। साथ ही, तकरीबन हर वर्ष दुर्घटनाएं भी हो रही हैं। इस वर्ष अभी तक पांच हेली दुर्घटनाएं हो चुकी है। यद्यपि, इनमें से तीन में जानमाल की हानि नहीं हुई है।
नियमानुसार हर हेली दुर्घटना की जांच अनिवार्य है। इसके लिए डीजीसीए द्वारा निर्धारित जांच एजेंसी इसकी जांच करती है। अमूमन दुर्घटना के तुरंत बाद जांच टीमें यहां आकर मौका मुआयना भी करती हैं। इन जांचों को पूरा करने में लंबा समय लगता है। इसके बाद यह जांच डीजीसीए को सौंपी जाती है। इन जांचों में निष्कर्ष क्या निकला, इसकी जानकारी राज्य को शायद ही मिल पाती है।बकौल संजू, ‘सुबह साढ़े पांच बजे के आसपास का वक्त रहा होगा। मैं घास काटने के लिए तीन अन्य साथियों के साथ गौरीकुंड गांव के ऊपर गौरी खर्क की पहाड़ी पर गई हुई थी। इसी बीच वहां से एक हेलीकाप्टर गुजरता दिखा। तब आसमान में बादल घिरे हुए थे, इसलिए हेलीकाप्टर साफ नजर नहीं आ रहा था।
उसने बादलों के बीच से एक चक्कर लगाया और फिर केदारनाथ की राह पकड़ने का प्रयास किया। इसी दौरान सामने एक बड़े पेड़ से टकराकर जमीन की ओर गिरने लगा।’ संजू ने बताया कि हेलीकाप्टर के गिरते ही उसमें आग लग गई।
हेली में आग की लपटें उठ रही थीं। साथ ही, उसके भीतर से तेज आवाजें भी आ रही थीं। कुछ ही मिनट में आवाजें आनी बंद हो गईं। वह अकेले ही हेली के पास पहुंची। मन में घायलों की मदद करने की चाह थी, लेकिन तब तक सब बुरी तरह जल चुके थे। संजू ने बताया कि उन्होंने हेलीकाप्टर का वीडियो बनाया और फिर उसे पुलिस तक पहुचाने के लिए गौरीकुंड में महेंद्र ¨सह को भेज दिया।