केवल 10 mm बारिश में खीर गंगा ने क्यों मचा दी धराली में तबाही? वैज्ञानिकों ने बताया.. पढ़िए

उत्तरकाशी: वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में मंगलवार को आई भयानक आपदा का कारण बादल फटना नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मौसम विभाग के अनुसार, धराली में 4 और 5 अगस्त को केवल 8 से 10 मिमी बारिश हुई, जबकि बादल फटने के दौरान 100 मिमी से अधिक बारिश होती है।

पूर्व वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं कि उत्तरकाशी जिले का धराली फ्लड प्लेन में स्थित है। दरअसल धराली के पीछे डेढ़ से दो किलोमीटर लंबा और अत्यंत घना जंगल है, खीर गाड भी उन्हीं जंगलों के बीच से गुजरती है। उसके ऊपर बर्फ से ढका पर्वत है, लेकिन जिस गति से फ्लैश फ्लड आया है, वह बादल फटने के समान नहीं है। उन्होंने बताया कि बादल फटने के समय आने वाला बहाव पहले धीमा होता है और फिर तेज हो जाता है। जबकि धराली में इसकी गति ऊपर जंगल में किसी अस्थाई झील या पानी के जमाव जैसी स्थिति को दर्शाती है।

100 mm बारिश पर होता है बादल फटने खतरा

डॉ. डीपी डोभाल ने बताया कि मौसम विभाग के अनुसार उत्तरकाशी के धराली में 4 और 5 अगस्त को केवल 8 से 10 मिमी बारिश हुई, जबकि बादल फटने के दौरान 100 मिमी से अधिक बारिश होती है। उनका मानना है कि इसके पीछे भूस्खलन के कारण पानी का प्रवाह रुकने से अस्थाई झील का निर्माण, पर्वत की तलहटी पर रुके पानी में ग्लेशियर या चट्टान का गिरना, या फिर फ्लैश फ्लड हो सकता है। डॉ. डोभाल ने आगे बताया कि धराली और उसके आस-पास बहुत संकरी घाटियाँ और ऊँचे पहाड़ हैं। ऐसे में यदि कोई ग्लेशियर टूटकर अस्थाई झील या जमे हुए पानी पर गिरता है, तो वह उसे तोड़ देता है। इसी कारण जो पानी नीचे आया वो काले रंग और मलबा स्लेटी रंग का है। ऐसा पानी और मलबा जमे हुए स्थान के टूटने से उत्पन्न होता है।

लगातार होती बारिश हो सकती है कारण

सामान्यतः 3 से 4 हजार मीटर की ऊंचाई पर बारिश नहीं, बल्कि बर्फबारी होती है। लेकिन पर्यावरण में बदलाव और बढ़ते तापमान के कारण ये पैटर्न बदल गया है। अब यदि लगातार बारिश होती है तो इससे ग्लेशियर टूटेंगे, और यदि ये ग्लेशियर किसी अस्थाई झील पर गिरते हैं, तो झील टूटकर तेजी से नीचे की ओर आएगी। डॉ डोभाल आगे कहते हैं कि, धराली की तबाही के वीडियो को देखें, तो ऐसा लगता है कि सैलाब किसी चीज के अचानक टूटने से बहुत तेजी से नीचे आया। इसमें पानी के साथ लूज मटीरियल (बर्फ, पत्थर, रेत, बजरी) भी शामिल है, जो तीक्ष्ण खड़ी ढलान के कारण सब कुछ नीचे ले आया।

ग्लेशियर या अस्थाई झील होती है खतरा

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता ने बताया कि इस आपदा आने का स्पष्ट कारण सेटेलाइट इमेज आने के बाद ही समझा जा सकेगा। हालांकि, पूर्व के अनुभवों और अध्ययनों के आधार पर इसके तीन-चार संभावित कारणों की पहचान की जा सकती है। इनमें ग्लेशियर का टूटना, भूस्खलन से बनी अस्थाई झील का टूटना, और फ्लैश फ्लड शामिल हो सकते हैं। वहीं, वाडिया के निदेशक डॉ. विनीत कुमार गहलोत ने बताया कि अब तक किए गए अध्ययन के अनुसार, यह माना जा रहा है कि धराली में आई आपदा के आने संभावित कारण ग्लेशियर का टूटना, भूस्खलन से बनी झील का टूटना, और फ्लैश फ्लड हो सकते हैं। लेकिन जब तक सेटेलाइट तस्वीरें उपलब्ध नहीं होतीं और वैज्ञानिकों की टीम वहां का दौरा नहीं करती, तब तक इसकी ठोस वजह बताना कठिन है।

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