हाई कोर्ट ने राज्य के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्रामीण व शहरी दोनों मतदाता सूची वाले प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने पर रोक से सम्बंधित निर्णय से चुनावी प्रक्रिया में असर नहीं पड़ने से संबंधित स्पष्टीकरण को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने पूर्व के निर्णय में किसी तरह के बदलाव से इन्कार करते हुए मौखिक तौर पर साफ किया कि कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है, केवल आयोग के 6 जुलाई के सर्कुलर पर रोक लगाई है।
11 जुलाई को पारित आदेश पंचायती राज अधिनियम के अनुसार है, इसलिए आयोग अधिनियम के अनुपालन को स्वयं जिम्मेदार है। आयोग के अधिवक्ता संजय भट्ट के अनुसार कोर्ट के रुख के बाद अब चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है।
रविवार को आयोग को ओर से प्रार्थना पत्र दाखिल कर कहा गया है कि हाई कोर्ट के ग्रामीण व शहरी मतदाता सूची दोनों मतदाता सूचियों वाले प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने पर रोक के निर्णय से पूरी चुनाव प्रक्रिया गड़बड़ा गई है।
आयोग प्रक्रिया में संसाधन खर्च कर चुका है। यदि रोक नहीं हटी तो इससे चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ने में बाधा पैदा हो गई है। कोर्ट के आदेश से चुनाव प्रक्रिया रुक गई है, इसलिए रोक हटाई जाए।
उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट ने रुद्रप्रयाग निवासी सतेंद्र सिंह बर्थवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए दो मतदाता सूची वाले प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।
याचिकाकर्ता का कहना था कि पंचायत राज अधिनियम की धारा 9 की उपधारा 6 में साफ उल्लेख है कि एक व्यक्ति एक से अधिक मतदाता सूची में शामिल व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता।
आयोग ने नियम विरुद्ध जाकर सर्कुलर जारी कर ऐसे प्रत्याशियों के नामांकन पत्र स्वीकार कर लिए। प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर रिटर्निंग अधिकारियों ने दो मतदाता सूची में नाम वाले प्रत्याशियों के नामांकन पत्रों के मामले में अलग अलग मत दिए हैं। कहीं नामांकन खारिज कर दिए तो कहीं स्वीकार किये गए। उधर, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी के अनुसार कोर्ट ने अपने आदेश में कोई बदलाव नहीं किया है। बहरहाल इस मामले में कोर्ट के आधिकारिक आदेश का इंतजार किया जा रहा है।