12.8 C
Dehradun
Friday, November 22, 2024

जानिए, षटतिला एकादशी की व्रत कथा

षटतिला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों के व्रत में महत्वपूर्ण माना जाता इस एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु का पूजन तिल से करने का विधान है। इस दिन पूजन में तिल के 6 उपाय किए जाते हैं। इस कारण ही इस व्रत को षटतिला एकादशी कहा जाता है। है।ये व्रत माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। इस साल षटतिला एकादशी का व्रत 28 फरवरी, दिन शुक्रवार को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का विधान है। षटतिला एकादशी के दिन पूजन में व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती कर पारण के समय तिल का दान करें। ऐसा करने से भगवत कृपा की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ति होती है।आइए जानते हैं षटतिला एकादशी की व्रत कथा षटतिला एकादशी की व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत और पूजन करती थी। यद्यपि वह अत्यंत धर्मपारायण थी लेकिन कभी पूजन में दान नहीं करती थी। न ही उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान किया था। उसके कठोर व्रत और पूजन से भगवान विष्णु प्रसन्न थे, लेकिन उन्होनें सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत और पूजन से शरीर शुद्ध कर लिया है । इसलिए इसे बैकुंठलोक तो मिल ही जाएगा। परंतु इसने कभी भी अन्न का दान नहीं किया है तो बैकुंठ लोक में इसके भोजन का क्या होगा ऐसा सोचकर भगवान विष्णु भिखारी के वेश में ब्राह्मणी के पास गए और उससे भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने भिक्षा में उन्हें एक मिट्टी का ढेला दे दिया। भगवान उसे लेकर बैकुंठ लोक में लौट आए। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी मृत्यु के बाद शरीर त्याग कर बैकुंठ लोक में आ गई। मिट्टी का दान करने के कारण बैकुंठ लोक में महल मिला, लेकिन उसके घर में अन्नादि कुछ नहीं था। ये सब देखकर वह भगवान विष्णु से बोली कि मैनें जीवन भर आपका व्रत और पूजन किया है लेकिन मेरे घर में कुछ भी नहीं है

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img
spot_img

Latest Articles

error: Content is protected !!