देवभूमि उत्तराखंड में भीमल एक वरदान ,जानिए क्या है इसकी विशेषताएं

देवभूमि उत्तराखंड में कई प्रकार के औषधीय गुणों से भरपूर पेड़ -पौधे एवं जड़ी बूटियां पाए जाती हैं तो साथ ही कई पौधे व पेड़ पहाड़ी क्षेत्रों में पालतू जानवरों के लिए चारा पति के लिए काम में भी लाये जाते है।

तो वहीं इनमें से एक ऐसा पेड़ है। जिसकी पत्तियां तो चारा पति के काम आती है, लेकिन साथ में इसके रेशे भी कई प्रकार उपयोग में लाए जाते हैं , जी हां आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मामूली सा पेड़ जिसके पत्ते चारा पति के काम ही लाए जाते थे और बाकी टहनी की लकड़ीयाँ चूल्हा जलाने के काम में उपयोग किए जाते थे ।

इन्हीं पेड़ों में से एक पेड़ हैं भ्यूल ( भीमल ), जी हां भ्यूल के छिलकों को बाल धोने में पुराने जमाने के लोग इस्तेमाल करते थे ।अब इन छिलकों से बने शैंम्पू बाजारों में उपलब्ध है ।जो की कई औषधीय गुणों से भरपूर है। इससे बने शैम्पू से बालों को धोने से बाल मुलायम और सिल्की हो जाते है। साथ ही इसके रेशों से सुंदर सुंदर सजावट के सामान व रसिया बनाई जाती है ।

वहीं कई संस्थाओं द्वारा उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में भीमल के रेशों से महिलाओं द्वारा चटाई,टोकरी, चप्पल, पायदान, बैग एवं सजाने का सजावटी सामान बनाया जा रहा है ।

 

इसके चलते महिलाओं कोअपने पालतू जानवरों के लिए चारा पति तो मिल ही रही है साथ ही उन्हें एक कुछ नया सीखने का भी अवसर मिल रहा है और उन्हें यह रोजगार भी दे रहा है ।इस तरह से  भीमल( भ्यूल )के पेड़ में औषधीय गुण तो है ही ,साथ में इसे कई प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है ।यह भीमल उत्तराखंड के लोगों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है।उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में इसे भीमल तो कहीं इसे भ्यूल के नाम से जाना जाता है। यह पेड़ बहुउपयोगी है।

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