
हाल ही में मैंने हिमालय की उच्च दरों को साइकिल से पूरे किए हैं जो कि है बहाही, नीति पास और माना पास यह तीनों दरें चमोली जिले में पढ़ते हैं जिनके लिए इन लाइन परमिट वह भारतीय सेना व आईटीबीपी से परमिशन लेनी पड़ती है।
15 अगस्त को मैंने साइकिल से पार्वती कुंड जिसकी ऊंचाई 4700 मीटर है को पूरा किया। पर्वती कुड मलारी गांव में करीब
50 किलोमीटर है। पार्वती कुछ पूरा बहाहोती की सीमा में आता है और चीन अभी भी दावा करता है कि यह एरिया उनका है।
उसके बाद 18 अगस्त को मैंने नीति पास को साइकिल से पूरा किया जिसकी ऊंचाई है 5064 मीटर यह नीति गांव जो कि भारत का आखिरी गांव है वहां से करीबन 52 किलोमीटर है। गणेश गंगा जो की आर्मी की आखिरी पोस्ट है वहां से आगे रोड नहीं है और नीति पास वहां से 15 किलोमीटर आगे है और बॉर्डर की जगह पर रोड का ना होना यह चिंता का विषय है क्योंकि नीति पास से चीन की रोड बहुत ज्यादा करीब थी और आने वाले समय में अगर चीन की तरफ से कुछ भी होता है तो हमारी भारतीय सेना को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
उसके बाद 23 अगस्त को मैंने माना पास को साइकिल से पूरा किया। माना पास माना गांव जो की भारत का आखिरी गांव है वहां से 58 किलोमीटर है और 5632 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा मोटरेबल दर्रा है। माना पास से 3 किलोमीटर पहले देवताल पड़ता है जो कि सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है। माना पास जैसे दुर्गम रास्ते में जहां ऑक्सीजन की बहुत कमी है वहा पूरा पास तक मैं साइकिल चला के ले गई। देवताल के बाद रोड नहीं है। और मेरी साइकिल में बहुत दिक्कत थी लेकिन ठान रखी थी की पूरा करना है तो करना है। वैसे देवताल से आगे जाने की अनुमति किसी को नहीं मिलती लेकिन बड़ाहोती और पार्वती कुड में मेरा साहस देखकर आर्मी ने मुझे पूरा पास तक जाने की अनुमति दे दी। पूरा चढ़ाई वाले रास्ते में साइकिल चला के जाना बहुत कठोर काम है। इस काम के लिए बहुत साहस की जरूरत पड़ती है। क्योंकि बात अगर आपके गरिमा और सम्मान की हो तो आप समझौता नहीं कर सकते।
इस पूरी साइकिल यात्रा में भारतीय सेना ने मेरा पूरा सहयोग किया था।
यह सब मैंने पहले तो महिला सशक्तिकरण के लिए किया ताकि लोगों को प्रेरणा मिल सके और अपने सपनों को पूरा करने के लिए साहस कर सकें। मैं इस यात्रा के माध्यम से लड़कियों को यह संदेश देना चाहती हूं कि वो खुद में पूरी है और उन्हें जीने के लिए किसी और की आवश्यकता नहीं है। बस जरूरत है तो खुद में विश्वास रखने की।
इसी कारण से मैंने पिछले साल मैने नीति और माना दोनों घाटियों को साइकिल से अकेले पूरा किया था।
दूसरा मैंने अपनी जनजाति समुदाय के लिए किया ताकि लोगों में साहसिक खेलों के लिए जागरूकता बड़े ।
और तीसरा यह कि पार्वती कुंड और देवताल हमारे उत्तराखण्ड की बहुत ही खूबसूरत जगह हैं। जिनके बारे में बहुत कम लोग को जानकारी है तो मेरा सुझाव यह है कि अगर इन दो जगह को राष्ट्रीय धरोहर में सम्मिलित किया जाए तो हमारे उत्तराखंड लिए बहुत गर्व की बात होगी। हाल ही में उत्तराखंड को टूरिज्म के क्षेत्र में प्रथम पुरस्कार मिला है और वैसे में अगर इन दो खूबसूरत जगह से देश को अवगत कराया जाए तो इससे बड़ी बात क्या होगी।।