विगत दिनों उत्तराखण्ड राज्य के लैंसडौन में विलुप्त हो चुकी उड़न गिलहरी इंडियन जाइंट फ्लाइंग स्क्वायरल नजर आई थी। तो वहीं अब वन अनुसंधान की टीम को देश में दुर्लभ स्थिति में पहुंचने वाली एक और स्माल कश्मीरी फ्लांइग स्क्वैरल दिखाई दी ।
आपको बता दें की इस स्माल कश्मीरी फ्लांइग स्क्वैरल यानी उडऩ गिलहरी को अल्मोड़ा जनपद के वन अनुसंधान की टीम द्वारा कैमरे में कैद कर लिया गया है। जिसे रानीखेत के जंगल में शोध के दौरान जूनियर रिसर्च फैलो (जेआरएफ) ज्योति प्रकाश जोशी द्वारा देखा गया है। इस कश्मीरी फ्लांइग स्क्वैरल का घोसला रानीखेत की कालिका नर्सरी से लगभग एक किमी पहले जंगल में सुरई के पेड़ पर टीम ने द्वारा देखा। जिसके पश्चात इसकी पुष्टि करने हेतु आसपास ही छह कैमरा ट्रैप लगाए गए थे। वहीं 15 अगस्त की रात को इन कैमरों में कुछ तस्वीरें कैद हुई। जिसके बाद ज्यादा साफ तस्वीरों के लिए अगले दिन टीम ने पुनः एक बार देर रात को तक इंतजार किया।
जैसे ही गिलहरी 12 से एक बजे के बीच घोसले से निकली तो गिलहरी की कई फोटो कैद कर ली गई। जिसमें पता चला कि यह प्रजाति स्माल कश्मीरी फ्लांइग स्क्वैरल है। साथ ही यह रेड ज्वाइंट गिलहरी के मुकाबले काफी छोटी होती है। ज्योति के अनुसार स्पीड ज्यादा व आकार छोटा होने के कारण यह कब घोंसले से बाहर और फिर भीतर चली जाए इसका पता नहीं लग पाता।तो वहीं मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि काफी प्रयासों के बाद रानीखेत में कश्मीरी उडऩ गिलहरी का आशियाना मिला है।
जिससे वन अनुसंधान के रिसर्च को और मजूबती मिलेगी।
आपको बताते चलें कि स्माल कश्मीरी फ्लांइग स्क्वैरल का आकर अन्य उडऩ गिलहरी के मुकाबले से काफी छोटा होता है। कश्मीर के अलावा यह शिमला में भी नजर आ चुकी है।वहीं 1997 में भी इसे रानीखेत में देखने का दावा किया गया था,परन्तु फोटो का प्रमाण नहीं होने की वजह से विभाग रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया जा सका।उत्तराखण्ड प्रदेश में उडऩ गिलहरी की अब तक दो प्रजातियां ट्रेस की जा चुकी थी।
इसमें से रेड ज्वाइंट स्क्वैरल को इसी वर्ष मुनस्यारी में और बुली स्क्वैरल को उत्तरकाशी में देखा जा चुका है। 2019 में उत्तराखण्ड वन अनुसंधान ने अनुसंधान सलाहकार समिति से इन गिलहरियों पर रिसर्च को लेकर अनुमति हासिल की थी। उसके बाद से संभावित ठिकानों पर इन्हें तलाशा गया था।आपको बताते चले की स्माल कश्मीरी फ्लांइग स्क्वैरल की ख़ास बात यह है कि यह जोड़े में रहने वाली प्रजाति है।तथा यह बच्चे के लिए भोजन लाने के लिए एक बार में एक गिलहरी ही बाहर जाती है।
साथ ही शाकाहारी होने के कारण बीज ही इसकी पसंद है। इसके साथ ही इन्हें रात्रिचर भी माना जाता है। क्यूंकि दिन में इनका मूवमेंट न के बराबर होता है। ये आमतौर पर जम्मू कश्मीर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही मिलती है।
कश्मीर पश्चिमी हिमालय का हिस्सा है।तो रानीखेत समेत पूरे कुमाऊं को पूर्वी हिमालय का अंतिम छोर माना जाता है। अब तक की रिसर्च से पता चलता है कि कश्मीरी उडऩ गिलहरी नवंबर से फरवरी यानी की शीतकाल के सीजन में शीत निद्रा की स्थिति में चली जाती है। हालांकि, इसके कारणों को लेकर स्थिति साफ नहीं है।