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Thursday, November 21, 2024

जानें- 1989 का वो कौन सा गढ़वाली गाना है, जिसे स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने दी थी अपनी आवाज

लता मंगेशकर ने 1989 में गढ़वाली फिल्म रैबार के मन भरमेगे मेरु सुध बुध ख्वे गे..गाने को अपनी पहचान दी थी। उस दौर में उत्तराखंड के संगीत को ये एक बेशकीमती तोहफा मिला था।
स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर का उत्तराखंड से गहरा नाता था। 1980 में गढ़वाली फिल्म रैबार (Film Raibar) में उनका ‘मन भरमैगे मेरी सुध -बुध ख्वे गे’ विशेष रूप से याद आएगा। उत्तराखंड के संगीत को लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने यह बेशकीमती तोहफा दिया। उत्तराखंड के लोक कलाकार जब भी उनसे मिलने मुंबई गए हो तो लता मंगेशकर उन्हें प्रोत्साहित करती थीं और उत्तराखंड के बारे में जरूर पूछती थी। रविवार को मुंबई में उनके निधन की सूचना से उत्तराखंड के लोक कलाकार भी शोकाकुल में हैं। कलाकारों ने इसे हिंदुस्तानी कला जगत की बड़ी क्षति बताया है।

लोकगायक नरेंद्र सिंह ने नेगी ने कहा कि मेरा भी मन था कि लता मंगेशकर के साथ गढ़वाली गीत गाऊं, लेकिन मुझे कभी मौका नहीं मिल पाया। आज उनके निधन की खबर सुनकर मन दुखी है। लोकगायक पद्मश्री डा. प्रीतम भरतवाण ने कहा कि लता मंगेशकर के इस दुनिया को छोड़कर जाने के बड़ा दुख है। उनके गीतों का दीवाना पूरी दुनिया है। उन जैसे कलाकार सदियों नहीं कई सदियों में जन्म लेते हैं। वे स्वरों की देवी स्वरूप थीं।

लता मंगेशकर का गढ़वाली गाना

लोक गायिका संगीता ढौंडियाल का कहना है कि मेरा काफी समय से मन था कि मुंबई जाकर उनका आशीर्वाद लूं, लेकिन कभी मुलाकात नही हो पाई। मैंने उन्हीं के गीत से गुनगुनाते हुए गीतों की शुरुआत की। उन्हें सरस्वती की अवतार कहना गलत नही होगा। लोकगायिका कल्पना चौहान ने कहा कि 1984-85 में राजस्थानी कार्यक्रम के रिकार्ड के दौरान मुम्बई स्टूडियो में लता मंगेशकर से उनकी मुलाकात हुई तो उनके विचारों से लगा जैसे वह भी उत्तराखंड से हों। पहाड़ और यहां के लोग के बारे में भी पूछकर उनकी सादगी को सराहा था। उनका निधन कला जगत के लिए बड़ी क्षति है। लोकगायिका मीना राणा, रंगकर्मी राजेंद्र चौहान, गढ़वाली फिल्म निर्देशक संजय कुमोला ने भी लता मंगेशकर के निधन पर दुख जताया।

 

निर्देशक सोनू पंवार की गढ़वाली फिल्म रैबार में मन भरमेगे गीत को लता मंगेशकर ने गाया था। तकरीब छह मिनट के यह गीत गीत देवी प्रसाद ने बनाया, जबकि बीना रावत और शिवेंद्र रावत ने अभिनय किया था। बताया जाता है कि उस समय इस गीत के लिए लता मंगेशकर ने चार घंटे का समय निकाला और एक एक शब्द का अर्थ समझ कर गाया।

 

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