रुद्रप्रयाग। कर्मों के आधार पर ही मनुष्य के आचरण निर्धारित होते हैं अगर व्यक्ति द्वेष भाव मन में रखता है तो कंस और पूतना की श्रेणी में आता है। अगर व्यक्ति को अपने कर्मों में शुद्धता और श्रेष्ठता लानी है तो उसका एकमात्र मार्ग भगवत भक्ति ही है। यह बात आज परा कुराली लस्या में आयोजित भागवत कथा के दौरान आचार्य शिवप्रसाद मंमगाई द्वारा कही गई। कथा का आयोजन किशोर सिंह राणा द्वारा अपनी पूजनीय स्वर्गीय माताजी प्यारी देवी की पुण्यतिथि पर कराया गया था। कथा में कर्मों की प्रधानता और महत्व को बताते हुए आचार्य मंमगाई ने कहा कि कर्म मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति होती है। कर्म ही मनुष्य को मानवता और पशुता की श्रेणी के भेद को समझाते है। किसी मनुष्य के बारे में कर्म ही उसके चरित्र का निर्माण करते हैं। उन्होंने कहा कि पशुओं के अंदर विचार करने की और निर्णय करने की क्षमता का अभाव होता है जबकि भगवान ने मनुष्यों को सोचने विचारने और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता प्रदान की है। अगर हम सोच समझ कर सही निर्णय लेते हैं या कोई कर्म करते हैं तो वह हमको पुरुष से पुरुषोत्तम बनाने की ओर ले जाते हैं और अगर हमारे कर्म ठीक नहीं होते हैं तो वह हमें पशुता की ओर धकेल देते हैं। बुरे कर्म हमें भय, आशंकाओं और चिंताओं से घेर लेते हैं। बुरा कर्म करने वाले स्वतः ही तमाम दुखों को आमंत्रित करते हैं। वहीं अच्छे कर्मों के आधार पर ही हम सुख शांति सद्भाव और संतोष पाने के हकदार बन जाते हैं। जो लोग श्रेष्ठ कर्मों का चयन करते हैं और अपने माताकृपिता की सेवा करते हैं, बुजुर्गों का सम्मान करते हैं। राग द्वेष और विद्वेष के भाव से परे रहकर अपना काम करते हैं वह परम आनंद के भागीदार बनते हैं और उन्हें ही देवत्व की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर क्षेत्र की तमाम गणमान्य व्यक्ति भक्तजन उपस्थित रहे। कथा के विराम होने पर किशोर सिंह राणा ने सभी से अनुरोध किया कि कल कथा 10 बजे से 1 बजे तक होगी तत्पश्चात भंडारे का आयोजन किया जाएगा जिसमें प्रसाद पाने के लिए आप सभी आमंत्रित हैं।