उत्तराखंड के टिहरी जनपद में स्थित मां सुरकंडा देवी का मंदिर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि मां सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल है ।यह मंदिर पहाड़ियों के बीच सबसे ऊंची पहाड़ी पर विराजमान है यहां पहुंच कर मानो ऐसा प्रतीत होता है कि हम स्वर्ग में पहुंच गए क्योंकि यहां पहुंच कर इतना आनंद आता है और दिल को सुकून मिलता है जो भी भक्त माता के दरबार में आते हैं उनकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है ।वही मां सुरकंडा धाम में श्रद्धालुओं की भीड़ इन दिनों खूब देखने को मिल रही है ।मां सुरकंडा धाम में उत्तराखंड से ही नहीं बल्कि अन्य बाहरी राज्यों से भी श्रद्धालु पहुंच रहे हैं ।श्रद्धालुओं ने बताया कि उन्हें यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है उन्होंने कहा कि हम यहां हमेशा आते हैं और हमारी मन्नते पूरी होती हैं ।आपको बता दें कि यहां चलने के लिए पैदल मार्ग से जाना पड़ता है ।सड़क मार्ग से मंदिर तक पहुंचने के लिए घोड़े या खच्चर में भी जा सकते हैं वैसे तो यहां पर रोपवे का भी कार्य चल रहा है जल्द ही आप मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे से जा सकते हैं । जिसका कार्य अभी प्रगति पर है और जल्द ही आप रोपवे का अभी आनंद ले सकते हैं ।वही पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि मां सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल हैं ।
बताया जाता है कि जब कनखल में राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ का अनुष्ठान किया था इस अनुष्ठान में सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था लेकिन शिव शंकर भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया गया था वहीमाता सती के मन में जिज्ञासा हुई कि मैं भोलेनाथ से पूछ कर अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने जाऊंगी माता सती ने भोलेनाथ से आग्रह किया कि मुझे भी पिता के यज्ञ में शामिल होना है, शिवजी ने माता सती से कहा कि हम इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं है तो हम कैसे जा सकते हैं माता ने कहा क्यों अपने पिता के घर जाने के लिए किसी आमंत्रण की आवश्यकता होती है क्या माता ने शिव जी से बहुत आग्रह किया और यज्ञ में चली गई जब दक्ष राजा ने अपनी पुत्री सती को वहां देखा तो उसे अपमानित किया यह अपमान माता सती सहन नहीं कर पाई और पिताजी केहवन कुंड में अपना शरीर त्याग दिया यह सूचना पाते ही शिव शंकर अति क्रोधित हुए और वहां पहुंच गए ,
उन्होंने वहां पहुंच कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया और माता सती का मृत शरीर अपनी भुजाओं में उठाकर ब्रह्मांड के चक्कर लगाने लगे जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था ,जिस कारण सती के जले हुए शरीर के इससे पृथ्वी के अलग-अलग स्थान पर जा गिरे और जहां जहां पर सती के शरीर के भाग गिरे थे वह सभी स्थान शक्तिपीठ बन गए ।तो वहीं जहां पर सुरकंडा देवी का मंदिर है बताया जाता है कि वहां पर माता सती का शिव गिरा था इसीलिए इस मंदिर की गणना 51 सिद्ध पीठों में की जाती है ।जब भी कोई पर्यटक धनोल्टी में घूमने आते हैं तो वह माता सुरकंडा मंदिर में माता सुरकंडा के भी दर्शन अवश्य करते हैं और उनकी मनोकामना भी पूर्ण होती है ।