देहरादून
बढ़ती आबादी, ट्रैफिक जाम और निजी वाहनों की तादाद को देखते हुए देहरादून की पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था में व्यपाक स्तर पर सुधार की जरूरत है। यह काम राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना संभव नहीं है, इसलिए अर्बन ट्रांसपोर्ट के मुद्दे पर जन जागरूकता भी लानी होगी। एसडीसी फाउंडेशन के सरकार और समाज के विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के साथ आयोजित “देहरादून में पब्लिक ट्रांसपोर्ट” राउंडटेबल डायलॉग में इस तरह के कई विचार और सुझाव सामने आए।
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक, सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल ने कहा कि राज्य गठन से अब तक देहरादून शहर की आबादी कई गुना बढ़ चुकी है। 2041 तक देहरादून की आबादी 24 से 25 लाख तक हो जाएगी। हमने इतने सालों में मेट्रो से लेकर नियो मेट्रो और पॉड टैक्सी तक कई विकल्पों की चर्चा सुनी, लेकिन कुछ भी ठोस पहल नहीं होने से लोगों का इन बातों से भरोसा उठ गया है। जबकि शहर ट्रैफिक की समस्या से बेहाल है। अर्बन ट्रांसपोर्ट के लिए कोई एक विभाग जिम्मेदार ना होने से भी समस्या बढ़ी है।
परिचर्चा में भाग लेते हुए आरटीओ (प्रवर्तन) शैलेश तिवारी ने बताया कि देहरादून के मौजूदा पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। वर्तमान में करीब 12 लाख की आबादी पर शहर में लगभग 10 लाख वाहन हैं। शहर में करीब 170 सिटी बस, 30 इलेक्ट्रिक बस, 500 टाटा मैजिक, 800 विक्रम, 2500 ऑटो, 4500 ई-रिक्शा का व्यापक ट्रांसपोर्ट सिस्टम है। भविष्य के लिए कुठालगेट-क्लेमेंटाउन, रायपुर-झाझरा और बल्लूपुर-कुआंवाला तक सर्कुलर रूट की प्लानिंग कर रहे हैं। कई मुख्य सड़कों पर आवाजाही बेहतर करने के लिए ई-रिक्शा को प्रतिबंधित भी किया जा रहा है। दून में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए हमें 30 सीटर की करीब 350 बसों की जरूरत है। जब तक मेट्रो आता है, मौजूदा सिस्टम को ठीक किया जाना चाहिए।
उत्तराखंड मेट्रो के डीजीएम (सिविल) अरुण कुमार भट्ट ने बताया कि 2019 में देहरादून के लिए कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान तैयार किया था, जो शहर की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था में सुधार का रोडमैप है। देहरादून की ज्यादातर प्रमुख सड़कें अपनी शत-प्रतिशत क्षमता का दोहन कर चुकी हैं। इसलिए हमें नए विकल्प पर काम करना ही होगा। देहरादून में नियो मेट्रो इसका एक अहम समाधान होगा। यह प्रोजेक्ट अभी केंद्र सरकार के सामने विचाराधीन है। दूसरे चरण में नियो मेट्रो फीडर के तौर पर पॉड टैक्सी का भी प्लान तैयार किया जा रहा है।
मेट्रो जैसी बड़ी रेल परियोजनाओं के अनुभव साझा करते हुए उत्तराखंड मेट्रो के पीआरओ गोपाल शर्मा ने बताया कि ये परियोजनाएं राजनीतिक इच्छाशक्ति पर भी निर्भर करती हैं। इसलिए जनप्रतिनिधियों की भूमिका अहम हो जाती है। दून में ज्यादातर सड़कें 12 मीटर तक ही चौड़ी हैं इसलिए हमें स्कॉई वॉक या अंडरग्राउंड ट्रांसपोर्ट सिस्टम विकसित करना होगा। शहर की 12 लाख की आबादी के अलावा यहां आने वाले पयर्टकों का भी आंकलन करना होगा। मेट्रो महिला सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद अहम है।
पर्यावरणविद डॉ. सौम्या प्रसाद ने देहरादून में आम जनता के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी और महंगे किराए का मुद्दा उठाया। ऑटो, ई-रिक्शा की मनमानी पर अंकुश के अलावा उन्होंने बस शेल्टर और भरोसेमंद पब्लिक ट्रांसपोर्ट विकसित करने पर जोर दिया। खासतौर पर सरकारी अस्पतालों के आसपास बस, ऑटो स्टॉप होने चाहिए। ई-व्हीकल को प्रमोट किया जाए। उन्होंने तकनीक और डेटा की मदद से लोगों की ट्रांसपोर्ट से जुड़ी जरूरतों और पैटर्न को समझने का सुझाव भी दिया।
परिचर्चा में वरिष्ठ पत्रकार अजीत सिंह ने कहा कि देहरादून में कई विधानसभा क्षेत्र होने के बावजूद पब्लिक ट्रांसपोर्ट चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया, जबकि दून में सड़कों का लैंडयूज बेहद कम है। प्राइवेट वाहनों पर निर्भरता अत्यधिक है। जब तक अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिटिकल मुद्दा नहीं बनेगा, तब तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हालत ऐसी ही रहेगी।
दून रेजीडेंट्स वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष और नगर निगम पार्षद देवेंद्र पाल सिंह मोंटी ने कहा कि बेहतर ट्रांसपोर्ट समय की मांग है। लेकिन इसमें साफ तौर पर राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव नजर आता है। विभागों के बीच तालमेल का अभाव है, साथ ही अधिकारियों की जिम्मेदारी तय नहीं है। शहर के ट्रैफिक और ट्रांसपोर्ट व्यवस्था में सुधार के लिए पब्लिक की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
कार्यक्रम का समापन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार संजीव कंडवाल ने कहा कि ट्रांसपोर्ट के नाम पर शासन का सारा फोकस रोडवेज पर रहता है, जबकि शहरी ट्रांसपोर्ट की सुध नहीं है। अर्बन ट्रांसपोर्ट की ना सिर्फ उपलब्धता बढ़े, बल्कि यह सुविधाजनक भी हो। उन्होंने देहरादून में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ती हुई जनसँख्या, अतिक्रमण और पब्लिक के दृष्टिकोण से जोड़ने की ज़रूरत