देवभूमि उत्तराखंड भी प्रत्येक समाज की तरह अपना प्राचीन परंपराओं लोक विश्वास लोक जीवन एवं रीति रिवाज सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति आदि को दर्शाता है ।उत्तराखंड में कई प्रकार की पारंपरिक आभूषण एवं परिधान पहने जाते हैं ।और यह इतिहास के सूक्ष्म पहलुओं के आकलन में भी सहायक होता है ।
यहां पर महिलाएं हो या फिर पुरुष यह सभी अपने पारंपरिक परिधानों को धारण करते हैं और जिससे उत्तराखंड देव भूमि की सुंदरता और भी बढ़ जाती है ।बता दे कि यहां पर अनेकों जनजातियों में भिन्न भिन्न प्रकार के वस्त्र एवं आभूषण पहनने की परंपरा प्रचलित है ।जैसे कि कुमाऊं व गढ़वाल की बोक्सा . थारू अथवा जौहरी जनजाति की महिलाएं पुलिया .पैजाम ,झड़तार छाड़जैसे आभूषण धारण करती हैवही पुलिया अन्य क्षेत्रों में पैरों की उंगलियों में पहने जाने वाले आभूषण है ।जिन्हें बिच्छू भी कहा जाता है ।वही गढ़वाल में इन्हें बिचवा तो कुमाऊं में बिछिया कहते हैं ।इसके अलावा गले में पहने जाने वाली सिखों की माला भी उत्तराखंड की सभी जनजातियों में प्रचलित है गढ़वाल में इससे हमें और कुमाऊं में अठन्नी माला जवनी माला रुपैमाला के नाम से जाना जाता है वही गले में पहने जाने वाला गोरबंद लॉकेट चर्यों ‘.हंसूली कंठी माला मूंगों की माला जैसे इन नामों से जाना जाता है नाक में पहने जाने वाली नथुली . बुलाक भी अधिक प्रचलन में है मांग में मांग टीका हाथों की पैछिया , कानों में पहने जाने वाले झुमकी आदि आभूषण अधिक प्रचलन में है ।
आभूषणों को शादीशुदा महिलाएं शुभ कार्य जैसे की शादी विवाह मुंडन पूजा पाठ के वक्तधारण करती हैं ।वही पौड़ी गढ़वाल में पहने जाने वाले परिधान खुचलागति धोती महिलाये पहनी है ।तो वही कुमाऊनी पिछौड चुन्नी विशेष रूप से पहनी जाती है। जो की बहुत प्रचलन में है ।